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Guru Shishya Story In Hindi- गुरु और शिष्य की कहानी ;Motivational Story In Hindi।motivationinhindi10

 

नमस्कार दोस्तों आज हम इस कहानी Guru Shishya Story In Hindi- गुरु और शिष्य की कहानी ;Motivational Story In Hindi के बारे में जानेंगे ।

Guru Shishya Story In Hindi- गुरु और शिष्य की कहानी ;Motivational Story In Hindi।motivationinhindi10

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#Guru Shishya Story In Hindi


 प्राचीन समय में एक नगर में एक राजा राज्य करता था। राजा बड़ा ही सरल स्वभाव का था ।राजा को विद्या ग्रहण करने का बहुत शौक था। इसलिए राजा पढ़ना चाहता था। राजा ने अपने मंत्री को बुलाया और मंत्री से कहा, मंत्री जाओ, अपने राज्य में जो विद्वान गुरु हो उन्हें राज महल में ले आओ। मैं विद्या ग्रहण करना चाहता हूं ।मंत्री ने कहा, ठीक है  महाराज ! हम कल सुबह राज्य में भ्रमण करेंगे और हमें जो भी विद्वान गुरु मिलेगा हम उन्हें राजभवन में ले आएंगे।



दूसरे दिन सुबह होते ही मंत्री गुरु की खोज में राज्य भ्रमण के लिए निकल पड़े । मंत्री ने सारे राज्य में ढूंढा परंतु उन्हें विद्वान गुरु नहीं मिला । कुछ देर में शाम होने वाली थी इसलिए मंत्री ने सोचा कि चलो अब घर चलते हैं। मंत्री घर की ओर लौट रहे थे। घर लौटते समय मंत्री जी जंगल से गुजरे, वही मंत्री को एक गुरु दिखाई दिए । गुरु एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाए बैठे थे।


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मंत्री जी घोड़ा से नीचे उतरे और गुरु के पास गए । मंत्री ने गुरु को प्रणाम किया , फिर कहने लगे , है गुरुवर !आपसे एक विनती है कि हमारे राजा विद्या ग्रहण करना चाहते हैं कृपा करके आप राजभवन चलें और राजा को विद्या का दान दें । गुरु मंत्री की प्रेम पूर्वक वाणी सुनकर प्रसन्न हो गए। गुरु ने कहा, चलो मंत्री राजभवन चलते हैं।



मंत्री और गुरु राज भवन पहुंच गए । राजा ने गुरु का स्वागत किया । गुरु ने दूसरे दिन से राजा को विद्या सिखाना शुरू कर दिया । विद्या ग्रहण करते हुए राजा को एक वर्ष होने जा रहा था परंतु राजा को विद्या समझ में ही नहीं आ रही थी । गुरु भी राजा को पढ़ाने में बहुत मेहनत कर रहे थे फिर भी राजा को समझ नहीं आ रहा था की हम गुरु की दी हुई शिक्षा को हम क्यों नहीं समझ पा रहे । यही जानने के लिए राजा ने, यही प्रश्न अपनी रानी से पूछा। रानी ने कहा की हम क्या जाने यह प्रश्न तो आप गुरु से पूछना।




राजा ने अगली सुबह धीमी आवाज में गुरु से कहां,  गुरुवर आप यदि बुरा ना मानो तो आपसे कुछ कहना चाहते हैं। गुरु ने कहा ,हां राजन बोलो, क्या कहना चाहते हो । राजा ने कहा ,  गुरुवर हमें विद्या ग्रहण करते एक वर्ष होने को जा रहा है लेकिन आपकी दी हुई विद्या हमारी समझ में ही नहीं आ रही।




गुरु ने राजा से कहा, राजन बात बहुत छोटी सी है परंतु आप अपने बड़े होने के अहंकार में इसे समझ नहीं पा रहे हैं । इसी कारण आप दुखी और परेशान हैं। राजा ने कहा, गुरुवर मैं कुछ समझा नहीं अपनी बात को स्पष्ट कहे । गुरु ने फिर कहां, माना कि आप बहुत बडे राजा है। आप हर प्रकार से मुझसे पद में और प्रतिष्ठा में बड़े हैं फिर भी यहां तो हमारा और तुम्हारा रिश्ता गुरु और शिष्य का है। आप खुद ऊंची सिंहासन पर और गुरु को छोटे से आसन पर बैठाते हो तो तुमही बताओ राजन तुम्हें विद्या कैसे समझ मैं आएगी। राजा गुरु की बात को समझ गया । राजा ने फिर गुरु को सिंहासन बैठाया और खुद छोटे आसन पर बैठा। अब गुरु ने जो भी विद्या बताई सिखाई बह सारी विद्या राजा को समझ में आ रही थी।

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दोस्तों हमें इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि, हमें अपने गुरु का आदर और सम्मान करना चाहिए।  गुरु को हृदय में स्थान देना चाहिए ।तभी गुरु की दी हुई विद्या हमारी समझ में आती है। अगर आपको यह हमारी कहानी अच्छी लगी हो तो आप इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, टि्वटर पर शेयर कर सकते हैं। धन्यवाद!




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गुरु और शिष्य की कहानी।

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