नमस्कार दोस्तों आज हम इस कहानी में जानते हैं कि हमें अपने जीवन में लालच करने से पहले लालच का फल के बारे में सोच लेना चाहिए। लालच का फल या फल का लालच कभी-कभी लाभकारी नहीं होता है। एसी ही लालच का फल कहनी ! लालची पंडित और पंडिताइन की कहानी - लालची पंडित और पंडिताइन की कहानी । एक कहानी आपको लिखने जा रही हैं।
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प्राचीन समय एक गांव में पंडित और पंडिताइन रहते थे। पंडित जी रोज भिक्षा मांगने जाते हैं और भिक्षा में जो पंडित जी उसे घर लाते हैं। फिर पंडिताइन भोजन बनाती है और फिर मिल बांट कर खाए जाते थे। भिक्षा से ही पंडित और पंडिताइन के घर की गुजर बसर हो जाती थी। दिन ऐसे ही बीत गए कुछ .जब एक दिन दीपावली का त्योहार आया तो पंडिताइन पंडित जी से बोली अजी सुनते हो, आज दीपावली है। भिक्षा मांगकर तनक जल्दी घर आ जाना पंडित जी बोले हां भाग्य वन जल्दी घर आ जाऊंगा।
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लालच का फल कहनी! लालची पंडित और पंडिताइन की कहानी - लालची पंडित और पंडिताइन की कहानी
पंडित जी को भिक्षा में थोड़ा बेसन , घी , शकर , ओर चावल में मिले।
पंडित जी जल्दी घर आए और पंडिताइन से बोले , आज तो लड्डू का सामान ओर चावल मिला। जल्दी लड्डू बनाओ। पंडिताइन ने कहा, ठीक है। तुम तब तक, हाथ मुंह धो लो। पंडित जी हाथ मुंह धो कर करभगवानका भजन करने लगे और सोचने लगे कि जितने जल्दी लड्डू बने और हम खाटे। ने पंडिताइनशामतकलड्डूबनाकर तैयार कर लिए। लड्डू केवल नो ही बने थे। अब पंडिताइन ने पंडित जी कोभोजनके लिए बुलाया। पंडित जी आए और चौका में बैठ गए। पंडिताइन लड्डूलाई और पंडित जी कोचारलड्डू लड्डू परोस दिए। पंडित जी ने थाली में देखा तो थाली में पांच लड्डू बचे थे। पंडित जी पंडिताइन से बोले, एक लड्डू और दो। पांच लड्डू हम खाएंगे और आपको चार लड्डू मिलेंगे। कायनकि इसको बनाने में हमने ज्यादा मेहनत की । तब पंडित जी ने कहा, नहीं। पाँच लड्डू हमें मिलना चाहिए क्योंकि भिक्षा मांगने के लिए आज मैं पाँच गाँव की ओर से मेहनत की थी इसलिए पाँच लड्डू हमें मिलने के लिए चार और लड्डू आप खाओ। केवल पंडिताइन पंडित जी से बोली, नहीं। इसको रिक और बनाने में हमने ज्यादा मेहनत की इसलिए पांच लड्डू हम खाएंगे और आप चार लड्डू खाओगे।
इस प्रकार पंडित जी और पंडिताइन में झगड़ा हो गया। आखिरकार दोनों इस शर्ट पर पहुंचे, जिसने पहले आंखें खोली और सबसे पहले बोलेगा वही चार लड्डू खाए। दोनों ने उस रात भोजन नहीं किया, लड्डू भी नहीं खाए और अपने ही स्थान पर पहें बंद करके लेट गए सुबह हो गए। पंडित और पंडिताइन दोनों ही सोते रहे ना हीेंन्द खोली और ना ही बोले।
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पंडित जी के लिंग तक मंदिर ना आने के कारण गांव वाले कहने लगे कि पंडित जी अभी तक मंदिर नहीं आए। गांव वाले कहने लगे कि चलो पंडित जी के घर जाने वाले देखते हैं। पंडित जी क्यों नहीं आए। जब गांव वाले घर पर आए तो उन्होने दरवाजा को खटखटाया ओर बुलाया लेकिन ना पंडित और ना पंडिताइन दरवाजा खोलने के उठे और ना बोले। गाँव वालों ने बहुत बुलाया और खटखटाया लेकिन दरवाजा नहीं बोला।
लालच का फल कहनी! लालची पंडित और पंडिताइन की कहानी - लालची पंडित और पंडिताइन की कहानी
गांव वालो ने दरवाजे को तोड़ दिया और अंदर चले गए। देखा तो पंडित जी वही लेटे थे और थोड़ा दूर पंडिताइन लेटी थी ।दोनों को जगाया लेकिन किसी ने आंखें नहीं खोली और ना ही बोले। दोनों को बहुत हिलाया डुलाया और बुलाया लेकिन किसी ने भी कुछ नहीं कहा। तब गांव वालों ने कहने लगे कि पंडित जी और पंडिताइन की मृत्यु हो गई है। अब उन्हें शमशान ले चलो। पंडित और पंडिताइन दोनों सुनते हुए साथ में से किसी ने नाआंखेंखोली और ना बोले। गाँवों के दोनों कोशमशानले जाने लगे। पंडित और पंडिताइन को शमशान ले जाने के लिए नो लोग गए। दोनों कोलकडिय़ोंपर रखने के लिए आग लगाने ही वाले थे। केवल एक आवाज आई अरे तुम पांच खा लो मैं चार खा लूंगा। शमशान ले जाने वालों ने यह आवाज सुनी। उसने सोचा कि हम नो लोग ही महसूस करते हैं कि यह हमारे ही खाने की सोच रहा है। केवल वह लोग सिर पर पैर रखकर वहां से भागे और कहने लगेपंडित और पंडिताइन भूत हो गए हैं इसलिए वह हमें खाने की सोच रहे हैं।
दोस्तों हमें अपने जीवन में कभी ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह कहानी, लालच का फल कहानी में यह दर्शाया गया है की लालच का फल लाभकारी नहीं होता है। इसलिए हमें ज्यादा लालच नहीं करना चाहिए।
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